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College History

54वें वर्ष में केन ग्रोअर्स नेहरू महाविद्यालय जो कि अपने अनुशासन एवं कार्य संस्कृति के कारण आज एक प्रतिष्ठित महाविद्यालय है। इस महाविद्यालय का 1968 में अस्तित्व में आना कोई अचानक घटी घटना नहीं थी। यह विचार एवं अथक लगन की एक सिलसिलेवार घटनाओं का अनुक्रम है। लखीमपुर-खीरी जिले के गोला गोकर्णनाथ परिक्षेत्र में बजाज हिन्दुस्तान शुगर लि. की स्थापना के साथ ही यह एक महत्वपूर्ण परिक्षेत्र हो चला था। मिल की गतिविधियों के चलते यह परिक्षेत्र धीरे-धीरे नगरीय परिक्षेत्र में बदलने लगा परिस्थितिवश यहाँ सामाजिक एवं राजनैतिक गतिविधियाँ तेज होने लगी थीं जिससे क्षेत्र में समृद्धि एवं शिक्षा का विस्तार हुआ और जैसे ही माध्यमिक स्तर पर शिक्षा से जनमानस संतृप्त हुआ वैसे ही क्षेत्र में उच्च शिक्षा हेतु एक महाविद्यालय की आवश्यकता महसूस की जाने लगी। तत्कालीन सामाजिक व राजनैतिक रूप से अग्रणी व्यक्तियों की चर्चाओं में यह आवश्यकता मुखर होने लगी थी। इसके अतिरिक्त स्वतंत्रता प्राप्ति से 1960 तक विभिन्न क्षेत्रों की सहकारी समितियों ने अपने क्षेत्र में कार्य करते हुए उल्लेखनीय प्रगति प्राप्त कर ली थी। अब वे अपने कार्य क्षेत्र के अतिरिक्त सामाजिक कार्यो की ओर उन्मुख हो रही थी। इस सन्दर्भ में 304 गन्ना क्षेत्र में कार्य कर रही सहकारी गन्ना समितियाँ भी गन्ना किसानों के पाल्यों की शिक्षा हेतु चिंतित थीं और शिक्षा के क्षेत्र में कुछ करना चाहती थीं। इसी प्रकार गोला परिक्षेत्र में सक्रिय अग्रणी व्यक्तियों की चर्चाओं में मुखर ’’क्षेत्र में एक महाविद्यालय की आवश्यकता’’ के विचार को गन्ना किसानों के हित सम्वर्द्धन हेतु कार्य कर रही को-आपरेटिव यूनियन, गोेला द्वारा अपना लिया गया था। महाविद्यालय में विशाल खेल के मैदान के अतिरिक्त वास्केटबाॅल, वाॅलीबाॅल, बैडमिंटन, हाॅकी, बैडमिंटन कोर्ट, व्यायामशाला आदि की मौजूदगी विद्यार्थियों के चतुर्दिक विकास की संभावनाओं को मजबूत करती है। आधुनिक शिक्षा के लिए स्मार्ट क्लासरूम, प्रोजेक्टर, वाई-फाई सुविधा, कम्प्यूटर प्रशिक्षण लैब की सुविधा भी उपलब्ध है।

मुझे विश्वास है कि नई शिक्षा नीति-2020 के अनुरूप हम महाविद्यालय परिवार के सभी सदस्य महाविद्यालय के छात्र/छात्राओं की उन्नति के लिए सदैव तत्पर है। महाविद्यालय खोलने का प्रस्ताव सर्वप्रथम 11 अप्रैल, 1962 को को-आपरेटिव केन डेवलपमेंट यूनियन के संचालक मण्डल की कार्यवाही बैठक मे प्रस्ताव संख्या 28 द्वारा पटल पर रखा गया। इस बैठक में श्री नरेन्द्र सिंह (तत्कालीन डी0एम0), श्री शिवरतन गिरि, श्री छोटेलाल, श्रीरामपाल, श्रीसुखपाल सिंह, श्री तिलकराम (विजित), श्री रामसिंह चौधरी, श्री द्वारिका प्रसाद, श्री बिहारीलाल, श्री हंसराम, श्री मुकुन्दराम, श्री के0सी0चतुर्वेदी (बी.एच.एल.प्रतिनिधि) एवं श्री एस0सी0गुप्ता (तत्कालीन जिला गन्ना अधिकारी) ने भाग लिया।

अप्रैल, 1962 में महाविद्यालय खोलने का प्रस्ताव तो हुआ किन्तु इस पर वास्तविक कार्य तब प्रारम्भ हुआ जब सोसाइटी की 17 जुलाई, 1964 में यूनियन भवन में हुई बैठक में सर्वश्री बिहारीलाल, श्री द्वारिका प्रसाद, श्री छोटलाल, श्री सुखपाल सिंह, श्री रामपाल सिंह द्वारा प्रस्ताव संख्या तीन द्वारा नेहरू जी की स्मृति में महाविद्यालय खोलने का प्रस्ताव रखा। नेहरू जी के नाम पर महाविद्यालय खोलने के पीछे कारण यह था कि उसी वर्ष 27 मई, 1964 को नेहरू जी का देहान्त हुआ था। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री की स्मृति एवं आदर्शो को संजोकर रखने के लिए ही महाविद्यालय का नाम नेहरू जी के नाम पर हो यह सहमति बनी थी। कालान्तर में चूंकि गन्ना उगाने वाले किसानों के सहयोग से यह महाविद्यालय खोला जाना था इसलिए महाविद्यालय के नाम में केन ग्रोअर्स और जोड़ा गया। इस सब पर विचार करते हुए सर्वसम्मति से पारित हुआ कि एक डिग्री कॉलेज, जिसमें कि कला, विज्ञान व कृषि की डिग्री कक्षाओं की व्यवस्था हो, खोला जाये। इस प्रस्ताव के सापेक्ष सर्वश्री शिवरतन सिंह, श्री छोटेलाल, श्री सुखपाल सिंह व समिति के मंत्री की एक समिति गठित की गई जिसका कार्य इस प्रस्ताव के अनुरूप आवश्यक सूचनाएँ जुटाना एवं रूपरेखा का निर्माण करना था। स्पष्ट है कि समिति इस तिथि तक कॉलेज खोलने को लेकर दृढ़ संकल्प कर चुकी थी।

इस सन्दर्भ में सहकारी गन्ना समिति के उपाध्यक्ष चौ0 रामसिंह, संचालक गण श्री सुखपाल सिंह, श्री राम भजन लाल शर्मा, ब्लाक प्रमुख श्री हरिहर बख्श सिंह, पालिकाध्यक्ष सेठ चुन्नीलाल आदि हरदोई जिले के लोकप्रिय किसान नेता एवं विधायक श्री मोहनलाल वर्मा जी से परामर्श हेतु मिले, जिन्होंने सन् 1960 ई0 में हरदोई जिले में गन्ना किसान सहकारी समिति के नियंत्रण में सी0एस0एन0डिग्री कॉलेज की स्थापना करने में बड़ी भूमिका निभाई थी। उन्होंने गोला सहकारी समिति के प्रतिनिधि मंडल को गवर्नर से मिलवाने का काम किया। विचार-विमर्श के इस दौर में बहुत ऐसे लोग भी थे जिन्होंने इस योजना को लेकर शंका उठाई और हतोत्साहित करने का काम किया किन्तु बाधक स्थितियां, कॉलेज खोलने को लेकर दृढ़ संकल्पित समिति को डिगा नहीं पाई। प्रारम्भ में यह कॉलेज विज्ञान, कृषि व कला संकाय के साथ खोला जाना था। इसमे भी ज्यादा जोर कृषि पर था। इस सन्दर्भ में एक प्रतिनिधि मंडल जिसमें चौधरी रामसिंह, श्रीसुखपाल सिंह व तेजनरायन त्रिवेदी जी, श्री चौधरी चरण सिंह जी से मिले किन्तु उनकी गोला परिक्षेत्र में कृषि महाविद्यालय की अनिच्छा देख कर कला संकाय का महाविद्यालय खोलने का निर्णय लिया गया।

इस सन्दर्भ में सहकारी गन्ना समिति के उपाध्यक्ष चौ0 रामसिंह, संचालक गण श्री सुखपाल सिंह, श्री राम भजन लाल शर्मा, ब्लाक प्रमुख श्री हरिहर बख्श सिंह, पालिकाध्यक्ष सेठ चुन्नीलाल आदि हरदोई जिले के लोकप्रिय किसान नेता एवं विधायक श्री मोहनलाल वर्मा जी से परामर्श हेतु मिले, जिन्होंने सन् 1960 ई0 में हरदोई जिले में गन्ना किसान सहकारी समिति के नियंत्रण में सी0एस0एन0डिग्री कॉलेज की स्थापना करने में बड़ी भूमिका निभाई थी। उन्होंने गोला सहकारी समिति के प्रतिनिधि मंडल को गवर्नर से मिलवाने का काम किया। विचार-विमर्श के इस दौर में बहुत ऐसे लोग भी थे जिन्होंने इस योजना को लेकर शंका उठाई और हतोत्साहित करने का काम किया किन्तु बाधक स्थितियां, कॉलेज खोलने को लेकर दृढ़ संकल्पित समिति को डिगा नहीं पाई। प्रारम्भ में यह कॉलेज विज्ञान, कृषि व कला संकाय के साथ खोला जाना था। इसमे भी ज्यादा जोर कृषि पर था। इस सन्दर्भ में एक प्रतिनिधि मंडल जिसमें चौधरी रामसिंह, श्रीसुखपाल सिंह व तेजनरायन त्रिवेदी जी, श्री चौधरी चरण सिंह जी से मिले किन्तु उनकी गोला परिक्षेत्र में कृषि महाविद्यालय की अनिच्छा देख कर कला संकाय का महाविद्यालय खोलने का निर्णय लिया गया।

14 फरवरी, 1965 को पब्ल्कि इण्टर कॉलेज में आयेाजित को-आपरेटिव केन डेवलपमेंट यूनियन की वार्षिक सभा में प्रस्ताव संख्या 9 द्वारा नेहरू कॉलेज के लिए धनराशि एकत्रित करने के क्रम में समिति के शिक्षा मद में जमा राशि एक लाख रूपये तथा अन्य मदों की धनराशि मिलाकर कुल 468565/-रूपये देना स्वीकार किया गया। इसके अतिरिक्त मिल की तरफ से पैसा देने का प्रस्ताव रखा गया किन्तु समिति संचालकों ने उनका पैसा लेने से मना कर दिया।

सन् 1966 ई0 में इस सन्दर्भ में केन सोसाइटी की बैठकें जल्दी-जल्दी आहूत की गई। जुलाई 1966 में जमीन खरीदने, अगस्त, 1966 में नक्शा बनवाने जैसे महत्वपूर्ण निर्णय लिये गए। यहां तक कि नवम्बर, 1966 में शिलान्यास हेतु राज्यपाल को आमंत्रित करने का प्रस्ताव हुआ था। ऐसा प्रतीत होता है कि जनवरी, 1967 तक नेहरू डिग्री कॉलेज, का विधान व नियमावली बन गयी थी क्योंकि 16.01.1967 को हुई बैठक में पहली बार प्रस्ताव सं.13 द्वारा कॉलेज के विधान की स्वीकृति का प्रस्ताव रखा गया था।

19 जुलाई, 1968 को महाविद्यालय को चलाने हेतु केन ग्रोअर्स नेहरू कॉलेज, गोला गोकर्णनाथ समिति का रजिस्ट्रेशन हो गया और महाविद्यालय को चलाने हेत एक समिति अस्तित्व में आ गई। इसी के साथ महाविद्यालय का नामकरण केन ग्रोअर्स नेहरू डिग्री कॉलेज होना भी सुनिश्चित हो गया। 19 जुलाई, 1968 में को-आपरेटिव केन सोसाइटी की बैठक में प्रस्ताव सं0 09 द्वारा निर्णय लिया गया कि 15000/रूपये कानपुर विश्वविद्यालय रजिस्ट्रार के पास जमा करा दिया जाये ताकि महाविद्यालय खुलने के लिए विश्वविद्यालय द्वारा एक पैनेल गठित किया जा सके। यह भी तय हुआ कि समिति उपाध्यक्ष चौ0 रामसिंह व श्री सुखपाल सिंह लीड रोल करते हुए बी0ए0 की मान्यता कानपुर विश्वविद्यालय से लाने हेतु आवश्यक कदम उठायें। विश्वविद्यालय द्वारा गठित तीन सदस्यीय पैनल में एक विशेषज्ञ जो कि स्थानीय थे, ने नकारात्मक टिप्पणी दी किन्तु दो अन्य विशेषज्ञों की सकारात्मक रिपोर्ट के चलते जुलाई, 1968 में ही इस महाविद्यालय को मान्यता मिल गई थी।

महाविद्यालय की मान्यता मिलने के पश्चात् 02 अगस्त 1968 को सी0जी0एन0 डिग्री कॉलेज समिति की एक महत्वपूर्ण बैठक में कक्षाओं की व्यवस्था हेतु गौशाला, पब्लिक इण्टर कॉलेज, व कृषक समाज इण्टर कॉलेज के प्रबन्ध तंत्र से बात करने व कॉलेज का कार्यालय प्रारम्भ करवाने का उत्तरदायित्व समिति के तत्कालीन सचिव/ मंत्री श्री बी0एल0 वर्मा को सौंपा गया। प्रवक्ताओं व स्टाफ की नियुक्ति के लिए तत्कालीन डी0एम0 व समिति के अध्यक्ष श्री महेन्द्र सिंह डेसी की अध्यक्षता में श्री भवानी शंकर व एक अन्य की कमेटी गठित की गई। समिति संचालकों व श्री बी0एल0 वर्मा जी के संयुक्त प्रयासों से पब्लिक इण्टर कॉलेज गोला गोकर्णनाथ के जूनियर विभाग का भवन किराए पर ले लिया गया। कार्यालय प्रारम्भ करने के लिए गन्ना समिति में कार्यरत वरिष्ठ लिपिक श्री शिवरतन गिरि को भेजा गया। प्रवेश प्रक्रिया के तहत प्रथम सत्र में 56 प्रवेश हुए और इनकों शिक्षा देने हेतु चार प्राध्यापक श्री काशीराज सिंह, श्री शिवमोहन लाल श्रीवास्तव, श्री विश्वम्भर दयाल शुक्ल, श्री नरेन्द्र देव शर्मा व प्राचार्य श्री जगदीश बाजपेई जी नियुक्त हो गये थे। प्रथम बैच में 15 छात्राएँ भी पढ़ने आने लगी थी। इन्हें कॉलेज की तरफ से निःशुल्क रिक्शा की सुविधा प्रदान की गई थी।

सन् 1970 तक आते-आते महाविद्यालय की कक्षाएँ वर्तमान में महाविद्यालय के पास उद्योग विभाग के टिन शेडों में तथा महाविद्यालय का प्रशासनिक कार्य को-आपरेटिव केन सोसाइटी के लखीमपुर रोड पर स्थित खाद गोदाम में चलने लगा था। कालान्तर में खाद गोदाम के पास 10 एकड़ जमीन खरीद ली गई, जिस पर भवन बनने के लिए सन् 1974 में कानपुर विश्वविद्यालय के कुलपति श्री राधाकृष्ण अग्रवाल ने शिलान्यास किया। महाविद्यालय के भवन डिजाइन को लेकर काफी विचार-विमर्श हुआ अन्त में श्री नरेश कोचर की डिजाइन को स्वीकार कर लिया गया। यह अंग्रेजी अक्षर क् की तरह था। कमरे व बरामदा ऐसा बनाया गया ताकि कक्षा चलते समय बरामदे में खड़ा व्यक्ति कक्षा के अध्यापक व छात्रों को दिखाई न दे। बरामदे की छत से कवर करती लटक इस भवन की अपनी एक विशेषता है। स्थानीय पहचान का आरोप न लगे इसलिए समिति द्वारा भवन निर्माण का ठेका जैन कांस्ट्रक्शन कम्पनी, नोएडा को दिया गया था। महाविद्यालय का भवन 1977 तक बनकर तैयार हो गया था। सबसे बड़ी विशेषता थी कि महाविद्यालय के खुलने में किसी से भी अनुदान नहीं लिया गया था और न ही फंड जुटाने के लिए बच्चों से कोई अतिरिक्त फीस वसूली गयी।

यह महाविद्यालय सन् 1972 ई0 में सरकारी अनुदान पर आ गया था और 1974 में बी0ए0 में अंग्रेजी, हिन्दी, राजनीतिशास्त्र, अर्थशास्त्र, सामान्य हिन्दी, सामान्य अंग्रेजी, संस्कृत की मान्यता मिल गयी थी। सन् 1985 ई0 में हिन्दी एवं अर्थशास्त्र विषय में स्नातकोत्तर कक्षाओं की अस्थायी अनुमति मिली। 1990 में यह मान्यता स्थाई कर दी गयी। 01.07.1999 में दो अन्य विषय अंग्रेजी एवं भूगोल विषय में स्नातकोत्तर स्तर पर स्ववित्तपोषी योजनान्तर्गत कक्षायें प्रारम्भ हो गयीं। इसी योजना में सन् 2016 ई0 में समाजशास्त्र एवं राजनीतिशास्त्र विषय में पी0जी0 कक्षाओं की अनुमति मिली।

श्री प्रमोद कुमार
सहायक आचार्य, संस्कृत
सी.जी.एन.(पी.जी.) काॅलेज,
गोला गोकर्णनाथ-खीरी

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